छूछक का उपहार

सविता ने अपने नन्हे बेटे को गोद में उठाया और प्यार से उसके माथे को चूमा। उसके चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन दिल में एक चिंता की लहर दौड़ रही थी। आज उसके ससुराल में कुंआ पूजन का आयोजन था, और पूरे परिवार के लोग एकत्र हो रहे थे। तभी मंझली चाची, सविता के कमरे में प्रवेश करती हैं।

“बहू सविता! अपनी मम्मी जी को फोन करके बता देना कि हमारे परिवार में पहले बच्चे के जन्म पर सभी भाभियों के लिए साड़ी के साथ-साथ हीरे की नहीं तो सोने की अंगूठी तो ज़रूर आती है। वैसे तो बड़े ताऊजी की बड़ी बहू के मायके से तो सबके लिए कंगन आए थे,” मंझली चाची ने तीखे स्वर में कहा।

सविता के मन में उथल-पुथल मच गई। अगर ननद एक होती तो शायद वह अपनी मम्मी से कुछ कह भी देती, लेकिन यहां तो ताऊ और चाचा की मिलाकर पांच ननदें थीं। उसके परिवार में अकेले पापा ही कमाने वाले थे, और घर के अनेक खर्च थे। किसी तरह उसकी शादी हुई थी, और छोटा भाई अभी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। सविता ने मन ही मन सोचा, “अगर मुझे पता होता कि बच्चे के जन्म पर भी मायके वालों को ही नोंचा जाएगा, तो मैं बच्चा ही ना पैदा करती।”

उसकी आंखों में आंसू भर आए, लेकिन उसने उन्हें अंदर ही अंदर समेट लिया। तभी उसकी सास, कमला देवी, कमरे में आईं और सविता के चेहरे पर चिंता की लकीरें देखकर बोलीं, “क्या हुआ बहू? इतनी परेशान क्यों दिख रही हो?”

सविता ने धीरे से कहा, “कुछ नहीं मम्मी जी, बस यूं ही।”

कमला देवी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “देखो, मुझसे कुछ भी छुपाने की जरूरत नहीं है। बताओ, क्या बात है?”

सविता ने हिचकिचाते हुए कहा, “मंझली चाची ने कहा कि मेरे मायके से सभी ननदों के लिए सोने की अंगूठियां आनी चाहिए। लेकिन मम्मी जी, हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि इतना बड़ा खर्च उठा सकें। पापा अकेले कमाते हैं, और भाई की पढ़ाई का खर्च भी है।”

कमला देवी ने सविता के हाथ को थामते हुए मुस्कुराकर कहा, “बहू, तुम्हें इन सब बातों की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। तुम बस अपने और बच्चे का ख्याल रखो। बाकी सब मैं संभाल लूंगी।”

सविता ने थोड़ा राहत महसूस किया, लेकिन फिर भी उसने अपनी हीरे की अंगूठी उतारकर कमला देवी के हाथ में रखते हुए कहा, “मम्मी जी, ये अंगूठी आप रख लीजिए। जो भी गहने मेरे पास हैं, आप उन्हें बेचकर जो देना चाहती हैं, दे दीजिए। लेकिन प्लीज, मेरे मम्मी-पापा से छूछक के नाम पर कुछ मांगने के लिए मत कहना।”

कमला देवी ने आंखें बड़ी करते हुए कहा, “खबरदार, सविता! ये तुम क्या कह रही हो? हमारे प्यार की निशानी को देने की बात कर रही हो? तुम्हें किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है। मैं हूं ना सब देखने के लिए। तुम बस आराम करो, और जच्चा-बच्चा दोनों हंसते हुए दिखने चाहिए मुझे।”

सविता की आंखों में खुशी और कृतज्ञता के आंसू आ गए। उसे लगा कि उसकी सास वास्तव में उसकी मां की तरह ही उसका ख्याल रख रही हैं।

कुंआ पूजन का दिन

कुंआ पूजन के दिन घर में रौनक थी। पड़ोसी और रिश्तेदारों से पूरा घर भरा हुआ था। सविता का भाई, रोहन, छूछक का सामान लेकर घर पहुंचा। वह अपने नन्हे भांजे को देखकर निहाल हो रहा था, लेकिन सविता के मन में चिंता थी कि पूरा खानदान अब इकट्ठा होगा और यही पूछेगा कि छूछक में क्या आया है।

कमला देवी ने सविता को स्टोर रूम में ले जाकर एक खूबसूरत पीले रंग की बनारसी साड़ी दी और कहा, “ये साड़ी तुम्हारी मम्मी जी लेकर आई हैं। तुम पर खूब खिलेगी। और ये देखो, ये साड़ियां तुम्हारी सभी ननदों के लिए हैं।”

सविता ने जब साड़ियों और गहनों का ढेर देखा तो उसकी आंखें चमक उठीं। चांदी के बर्तन, खिलौने, सभी बेटियों के लिए सोने की अंगूठियां और सविता के लिए हीरे जड़ित एक सुंदर सी चेन।

कमला देवी चहकते हुए सबको ये सामान दिखाने लगीं। सभी रिश्तेदार और पड़ोसी सामान देखकर तारीफ करने लगे। सविता के मन में सवाल उठ रहा था कि ये सब कैसे हुआ। उत्सव के बाद उसने रोहन को एक कोने में बुलाकर पूछा, “भाई, ये सब सामान कैसे? तुम तो इतना नहीं ला सकते थे।”

रोहन ने मुस्कुराते हुए कहा, “दीदी, मैं तो सिर्फ एक सूटकेस लेकर आया था, जिसमें कुछ कपड़े और मिठाइयां थीं। वो आंटी जी को दे दिया। ना उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या लाया हूं और ना ही मैंने बताया। बाकी सब तो आंटी जी ने ही किया है।”

सविता की आंखों में आंसू आ गए। तभी कमला देवी वहां आईं और सविता के सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं, “बिटिया, कुटुंब से लिया है तो देना भी पड़ता है। मैंने वो सामान भी इसके बीच में सजा दिया है। तुम्हारे मम्मी-पापा ने बहुत अच्छा दिया है, लेकिन हमारा परिवार इतना बड़ा है कि कोई कितना देगा। इसलिए मैंने अपने हिसाब से सब खरीद लिया है। और हां, तुम्हारे भाई और बुआ के लड़के के लिए भी गर्म सूट खरीदकर लाई हूं। आखिर तुम्हारा सम्मान हमारा ही सम्मान है।”

सविता ने रोते हुए कमला देवी को गले लगा लिया और कहा, “मम्मी जी, आप सच में मेरी मां जैसी हैं। आपने जो किया, उसके लिए मैं आपकी आभारी हूं।”

कमला देवी ने सविता के आंसू पोंछते हुए कहा, “अरे पगली, रोती क्यों है? ये सब तो मेरा फर्ज है। और हां, अगर तुम्हें और कुछ चाहिए तो बेझिझक बता देना।”

परिवार का मिलन

उत्सव के बाद सभी मेहमान खाना खा रहे थे। सविता की ननदें, रीना, प्रिया, सुषमा, कविता और नीलू, सभी साड़ियों और गहनों को देखकर खुश थीं। रीना ने सविता के पास आकर कहा, “भाभी, ये साड़ी बहुत सुंदर है। मम्मी जी ने आपके मायके वालों से इतनी अच्छी चीजें मंगवाई हैं।”

सविता ने मुस्कुराते हुए कहा, “हां दीदी, मम्मी जी ने सब कुछ बहुत अच्छे से संभाल लिया।”

प्रिया ने कहा, “भाभी, हमें तो लगा था कि इतना सब नहीं आएगा, लेकिन मम्मी जी ने तो हमारी उम्मीदों से भी ज्यादा कर दिया।”

सविता ने सोचा कि अगर कमला देवी ने ये सब ना किया होता तो शायद ननदों की नाराजगी उसे झेलनी पड़ती। उसने मन ही मन कमला देवी के प्रति और भी आभार महसूस किया।

मायके की बातचीत

कुछ दिन बाद, सविता अपने कमरे में बैठी अपने मम्मी-पापा से फोन पर बात कर रही थी। उसकी मम्मी, सरिता, ने पूछा, “बेटा, वहां सब ठीक है ना? हमने तो उतना ही भेजा था जितना हमसे हो पाया। कहीं तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं हुई?”

सविता ने खुश होते हुए कहा, “नहीं मम्मी, यहां सब बहुत अच्छे से हुआ। मम्मी जी ने सब कुछ संभाल लिया। उन्होंने इतना सारा सामान खुद खरीद लिया और सबको लगा कि ये सब आपने भेजा है। उन्होंने आपकी बहुत तारीफ की।”

सरिता ने राहत की सांस लेते हुए कहा, “अच्छा हुआ बेटा। मैं तो बहुत चिंतित थी कि कहीं तुम्हें कुछ सुनना ना पड़े। कमला देवी जी बहुत अच्छी हैं।”

सविता ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा, “हां मम्मी, वो सच में बहुत अच्छी हैं। उन्होंने मुझे कभी महसूस नहीं होने दिया कि मैं इस घर में नई हूं। हमेशा मेरी मां की तरह ख्याल रखती हैं।”

सविता के पापा, रामनाथ, ने फोन लेकर कहा, “बेटा, हम भी कमला देवी जी से मिलना चाहते हैं और उनका धन्यवाद करना चाहते हैं।”

सविता ने कहा, “पापा, आप लोग जब भी समय मिले, यहां आ जाइए। मम्मी जी भी आपसे मिलकर खुश होंगी।”

ससुराल में बढ़ता प्रेम

दिन बीतते गए और सविता और कमला देवी के बीच का बंधन और मजबूत होता गया। कमला देवी सविता को हर काम में सहयोग करतीं और उसे नई-नई चीजें सिखातीं। सविता भी उन्हें मां की तरह सम्मान देती और घर के कामों में हाथ बंटाती।

एक दिन, कमला देवी ने सविता को अपने पास बुलाकर कहा, “सविता बेटा, तुमने तो हमारा घर रोशन कर दिया है। तुम्हारे आने से घर में खुशियां ही खुशियां हैं।”

सविता ने मुस्कुराते हुए कहा, “मम्मी जी, ये सब आपका आशीर्वाद है। आपने मुझे इतना प्यार दिया है कि मैं खुद को इस घर का हिस्सा महसूस करती हूं।”

कमला देवी ने सविता के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा, तुम मेरी बहू नहीं, बेटी हो। और मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा खुश रहो। अगर कभी कोई परेशानी हो तो मुझसे बेझिझक कहना।”

सविता की आंखें नम हो गईं। उसने कमला देवी को गले लगाते हुए कहा, “मम्मी जी, आपके जैसा ससुराल पाकर मैं खुद को बहुत भाग्यशाली समझती हूं।”

परिवार में बदलाव

कमला देवी के इस व्यवहार ने परिवार के अन्य सदस्यों को भी प्रभावित किया। मंझली चाची, जो पहले सविता को तंग करती थीं, अब उनके प्रति थोड़ा नरम हो गई थीं। एक दिन, चाची ने सविता से कहा, “बहू, मुझे तुमसे कुछ कहना है। पहले अगर मैंने तुम्हें कुछ कहा हो तो माफ कर देना। मैं नहीं समझ पाई थी कि तुम्हारे मायके की स्थिति क्या है।”

सविता ने विनम्रता से कहा, “चाची जी, कोई बात नहीं। आप बड़े हैं, आपका हक है हमें सिखाने का।”

चाची ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम बहुत अच्छी हो बहू। घर की शांति और सुख तुम्हारे जैसे लोगों से ही होते हैं।”

सविता ने दिल से चाची को धन्यवाद दिया। उसे महसूस हुआ कि कमला देवी के प्रेम और समझदारी ने पूरे परिवार को एक नया दृष्टिकोण दिया है।

समाप्ति

कुछ महीनों बाद, सविता के मायके से उसके मम्मी-पापा और भाई ससुराल आए। कमला देवी ने उनका भव्य स्वागत किया। दोनों परिवारों के बीच प्रेम और सम्मान का आदान-प्रदान हुआ। रामनाथ ने कमला देवी से कहा, “बहन जी, आपने हमारी बेटी को जो प्यार और सम्मान दिया है, उसके लिए हम आपके आभारी हैं।”

कमला देवी ने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे भाई साहब, सविता अब हमारी बेटी है। उसका ख्याल रखना हमारा फर्ज है।”

इस मुलाकात ने दोनों परिवारों के बीच के रिश्तों को और भी मजबूत किया। सविता ने अपने जीवन में इतना प्यार और सम्मान पाकर खुद को धन्य महसूस किया। उसे समझ में आया कि ससुराल में अगर सास-ससुर समझदार और प्रेमपूर्ण हों तो जीवन कितना आसान और सुखद हो सकता है।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि परिवार में प्रेम, समझदारी और सहयोग से सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है। अगर सास अपनी बहू को बेटी की तरह समझे और बहू अपनी सास को मां की तरह माने तो परिवार में हमेशा खुशियां बनी रहेंगी।