रिश्तों में दरार

मैं गरिमा हूँ। मैंने और राजीव ने 1 साल की डेटिंग के बाद शादी की है। हमारी शादी में कुछ खास दोस्त और माता-पिता ही शामिल हुए थे। राजीव ने ऐसा ही चाहा था। वह चाहते थे कि शादी शॉर्ट और सिंपल ही हो। हम लोग बड़े शहर में काम करते हैं, जबकि राजीव के माता-पिता गांव में रहते हैं। राजीव ज्यादा गांव नहीं जाते। जब भी मम्मी-पापा से मिलना होता है, तो वे हमें शहर में आकर ही मिल लेते हैं। हमने एक छोटा सा घर भी लोन पर ले लिया है।

शादी के चलते मैंने नौकरी छोड़ रखी है। हमारा घर सड़क के किनारे है, खिड़कियों से सड़क दिखाई देती है। हमारे किचन की खिड़की से भी सड़क दिखती है। राजीव का ऑफिस का टाइम सुबह 9 बजे का है। सुबह मैं राजीव के लिए खाना बनाती हूँ। मेरी नजर खिड़की के बाहर गई तो देखा कि सड़क के दूसरी तरफ एक लड़की खड़ी है, जो ज्यादा उम्र की नहीं थी। करीब 26 साल की होगी। वह हमारे घर की तरफ देख रही थी। पहले दिन मैंने सोचा कि कोई होगी। लेकिन वह 3-4 दिन लगातार आती रही।

मैंने मन में सोचा कि जाकर उससे बात करूँ, शायद वह किसी और घर को समझकर हमारे घर की ओर देख रही होगी। सुबह राजीव सो रहे थे, और वह लड़की फिर दूर खड़ी दिखाई दी और हमारे घर की ओर देख रही थी। इस बार मैं बाहर गई। उसने मुझे आते ही देखा और घबरा गई। मैंने पूछा, “क्या आपको कोई परेशानी है? आप किसे ढूंढ रही हैं?”

वह घबराई हुई बोली, “राजीव यहीं रहते हैं?” मैंने कहा, “हाँ, आप कैसे जानती हैं?” इतना सुनते ही वह घबरा कर चली गई। मैंने उसे आवाज दी, लेकिन उसने सुना नहीं। मैं अपने घर में वापस आ गई। मेरे आने पर राजीव उठ गए थे। उन्होंने पूछा, “कहाँ गई थी?” मैंने कहा, “पता नहीं, एक लड़की है जो हमारे घर की तरफ देखती रहती है। और मैंने जब जाकर उससे पूछा, तो उसने तुम्हारा नाम भी लिया।”

राजीव यह सुनकर भड़क गए। बोले, “पागल हो क्या? कोई कुछ भी बोलेगा और तुम मान लोगी क्या?” लेकिन यह सुनने के बाद राजीव के चेहरे का रंग उड़ गया था। मेरे दिमाग में कुछ चलने लगा। राजीव जब शाम को आए, तो मैंने इस विषय में कोई बात नहीं की। अगले दिन सुबह उठी तो राजीव पहले से ही उठे हुए थे। मैं किचन में गई, तो देखा कि खिड़की की ऊपर वाली कुंडी भी लगी हुई थी और बड़ी मुश्किल से खोलने पर खुली।

मैंने कैसे भी कुंडी खोली और खिड़की खोली, तो हैरान रह गई। राजीव उस लड़की से बाहर जाकर बात कर रहे थे। वह उस पर चिल्ला और गुस्सा कर रहे थे। लड़की रो रही थी और राजीव ने उसे उंगली दिखाकर जाने को कह दिया। यह सब देखकर मैंने खिड़की बंद कर दी ताकि राजीव को लगे नहीं कि मैंने उसे यह करते देखा है। राजीव फिर घर में आ गए। मैंने ऐसा जताया जैसे मैंने कुछ देखा ही नहीं है।

अब मुझे ना जाने कैसे-कैसे ख्याल आने लगे। राजीव मुझसे क्या छिपा रहा है? मैंने राजीव से शादी करके कोई गलती तो नहीं की? आखिर वह लड़की कौन है और राजीव उस पर इतना गुस्सा क्यों कर रहे थे? राजीव के जाने के बाद मैंने राजीव के सारे दोस्तों को, जिन्हें मैं भी जानती थी, उन्हें फोन किया। लेकिन किसी को भी उस लड़की के बारे में नहीं पता था।

मेरी समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। राजीव से पूछना चाहती थी, लेकिन मुझे पता था कि वह झूठ ही बोलेगा। उसके बाद मैंने उस लड़की को घर के आसपास नहीं देखा। यह सब सोचते-सोचते मेरी तबियत बिगड़ने लगी। राजीव मुझसे बोलते थे कि क्या हुआ, अपना ख्याल रखो, डॉक्टर के पास जाओ, लेकिन अब मुझे उसकी बातें बिल्कुल अच्छी नहीं लग रही थीं।

एक दिन जब मेरी हालत ज्यादा खराब हुई, तो मैं ऑटो लेकर पास के बड़े अस्पताल गई। डॉक्टर से अपनी दवाई लेने के बाद मैं अस्पताल के पार्क में बैठी थी। अस्पताल में मुझे वह लड़की फिर दिखाई दी। उसे देखते ही जैसे मेरी बीमारी पता नहीं कहां भाग गई। मैं उसके पास तेज़ी से चलकर गई और उसका हाथ पकड़ लिया।

मैंने उससे कहा, “तूने मेरी जिंदगी में उथल-पुथल मचा दी। बता, उस दिन राजीव तुझसे क्या बात कर रहा था? क्या रिश्ता है तेरा मेरे पति से?” उसने जो कुछ बताया, उसे सुनकर मुझे लगा कि मेरा पति ऐसा है। उसने इतनी बड़ी बात मुझसे छिपाई।

शाम को राजीव जब घर आए, तो उस लड़की को घर में देखकर चौंक गए। मैं भी उसके पास ही बैठी थी। राजीव उसकी तरफ देखकर बोले, “अच्छा, तो तूने इसे सब बता दिया। मना किया था दूर रहने को मेरी फैमिली से।” मैंने कहा, “राजीव, शर्म करो। तुम इतने कठोर हो, अपनी सगी बहन की मदद नहीं कर रहे हो।” वह लड़की संध्या थी, राजीव की सगी बहन। उसने अपनी पसंद के लड़के से शादी कर ली थी, इसलिए राजीव और उसके परिवार ने उससे सारे रिश्ते तोड़ दिए थे।

राजीव ने कहा, “मेरी कोई बहन नहीं है।” मैंने कहा, “इसका पति अस्पताल में है, इसे रुपयों की जरूरत है। बहन नहीं तो इंसानियत के नाते ही तुम्हें इसकी मदद करनी चाहिए थी। और अपनी पसंद की लड़की से शादी तो तुमने भी की है, फिर जो नियम इसके लिए हैं, तुम्हारे लिए क्यों नहीं हैं? मुझे पता होता कि तुम ऐसी सोच वाले हो, तो मैं तुमसे कभी शादी नहीं करती।” “जिसको बहन के आंसू नहीं पिघला सके, उस आदमी के सीने में दिल नहीं हो सकता।” इतना कहकर मैंने अंदर से अपने सारे गहने लिए और संध्या के साथ जाने लगी।

हमें जाते देख राजीव फूट-फूट कर रोने लगे। संध्या भी उन्हें देखकर रोने लगी। रोते हुए राजीव बोले, “हमने इसे बहुत प्यार दिया, पापा ने, मम्मी ने, मैंने रानी बनाकर रखा। और यह ऐसे ही एक दिन बिना बताए घर से चली गई। हमारा प्यार तूने नहीं देखा। इसके लिए मैं रात भर रोया, कि कहां होंगी, कैसी होंगी मेरी बहन? तब इसे भाई और पापा की याद नहीं आई।” “अरे, मुझसे कहती तो तुझे क्या करना है। ऐसी ही चली गई थी ना, अब क्यों आई है?” बहन भी बोली, “भैया, मुझे लगा आप लोग नहीं मानेंगे।”

उन दोनों भाई-बहन को रोते देख मेरी आँखें भी भर आईं, लेकिन आंसुओं के साथ जैसे सारे गीले शिकवे खत्म हो गए। राजीव खुद अस्पताल गए संध्या के साथ। मम्मी-पापा को भी बुलाया। दोनों ने बेटी को बड़े प्यार से गले लगा लिया।

अब अस्पताल में संध्या के पति की हालत बहुत अच्छी है। डॉक्टर ने कहा कि वह जल्दी डिस्चार्ज हो जाएंगे। राजीव की आँखों में मुझे अब एक अलग सुकून देखने को मिल रहा है। राजीव ने संध्या से कहा, “अब कुछ करेंगी तो माफ नहीं करूंगा। हमेशा मेरी प्यारी बहन के रहना। जिंदगी बहुत छोटी है। आपके अहंकार में इतना सुकून नहीं है, जितना कि माफ कर देने में है। एक बार करके देखिए, जिंदगी बदल जाएगी।