एक बेटे की निष्ठा

शिवनारायण जी का जीवन एक संघर्षमय राह पर चल रहा था। जीवन की सर्दी-गर्मी का सामना करते हुए, उनका स्वास्थ्य भी अब ढलते सूरज की तरह कमजोर होने लगा था। किडनी की समस्या ने उनकी जिंदगी को कठिन बना दिया था, और कभी-कभी उन्हें बिस्तर पर पेशाब की समस्या हो जाती थी। एक दिन, जब बहू दीपिका ने नई चादर बिछाई और बेटे अजय को चेतावनी दी कि अगर बिस्तर फिर से गंदा हुआ तो वह उसे साफ नहीं करेगी, तो शिवनारायण जी को इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ा।

दीपिका और अजय का दिन शादी के कपड़े लेने के लिए बाहर जाने का था। शिवनारायण जी ने सोचा कि आज मौका है, वे बिस्तर की सफाई कर लें ताकि बहू-बेटा घर लौटने पर कोई शिकायत न करें। उन्होंने जल्दी-जल्दी बिस्तर से गंदगी को साफ किया और चादर को बाथरूम में धोने लगे। भूख भी लग रही थी, लेकिन उन्होंने इस कार्य को प्राथमिकता दी ताकि किसी को किसी तरह की परेशानी न हो।

उनके हाथ तेजी से काम कर रहे थे, लेकिन चादर इतनी गीली हो गई थी कि उठाना मुश्किल हो गया। उनकी सांसें फूलने लगीं और चिंता ने उनके चेहरे पर शिकन ला दी। अचानक, अजय और दीपिका की आवाजें सुनाई दीं। उन्होंने सोचा, “अब सब समझ जाएंगे, मुझे जो करना था कर लिया है।”

दीपिका ने बिस्तर की गंदगी देखी और अपनी नाराजगी जाहिर की, “फिर से पापा जी ने बिस्तर खराब कर दिया। अब तो मुझे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ेगा।” अजय ने अपनी पत्नी को शांत करने की कोशिश की और कहा, “दीपिका, तुम मायके जा सकती हो। मैं अपने पिता को छोड़ नहीं सकता। उन्होंने मेरे कच्छे में पेशाब साफ किया था जब मैं छोटा था। उस दिन भी जब उन्होंने अपनी यूनिफॉर्म पर टॉयलेट किया, तो वे मेरी सेवा में लगे थे।”

अजय ने अपने पिता को संभाला और कुर्सी पर बिठाया। शिवनारायण जी ने कहा, “बहू, अब नहीं होगा… मैंने साफ कर दी है।” अजय ने पिता के कपड़े बदले और चाय बनानी शुरू की। उसकी मेहनत और स्नेह ने उसके पिता को गर्मी दी। अजय ने नई चादर बिछाई और अपने पिता को सुकून देने के लिए चाय पिलाई।

शिवनारायण जी की आँखों में आँसू आ गए, जिन्हें वे धीरे-धीरे धोती के कोने से पोंछ रहे थे। उन्होंने अपनी पत्नी की तस्वीर की ओर देखा और मन ही मन कहा, “सुमित्रा, तुम कहती थीं कि जब मैं चला जाऊंगा, तो कौन मेरे ख्याल रखेगा। देखो, हमारा अजय कैसे मेरे बुढ़ापे की सेवा कर रहा है।”

दरवाजे पर खड़ी दीपिका भी अपने किए पर पछता रही थी। उसने देखा कि अजय ने अपने पिता को पूरी तरह से संभाला और उनकी सेवा की। दीपिका को एहसास हुआ कि हर परिवार के सदस्य को स्नेह और सम्मान का हक है, चाहे वे कितने भी कमजोर क्यों न हो जाएं।

इस घटना ने दीपिका को परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी और संवेदनशीलता की सही समझ दी। अजय ने यह साबित कर दिया कि सच्ची सेवा और प्यार अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य की स्थिति को समझने और उसका सम्मान करने में निहित है।

इस पूरे दृश्य ने सभी को यह सिखाया कि परिवार का हर सदस्य, चाहे उसकी स्थिति कैसी भी हो, उसकी सेवा और सम्मान का हकदार होता है। इस तरह के अनुभव और सच्चे परिवारिक रिश्ते ही हमें जीवन के असली मूल्य और सम्मान की पहचान कराते हैं।