बदलते वक़्त की दास्तान

ये उम्र चालीस की बड़ी अजीब होती है !

ना बीस का जोश,

ना साठ की समझ,

ये हर तरह से गरीब होती है ।

ये उम्र चालीस की बड़ी अजीब होती है !

सफेदी बालों से झांकने लगती है,

तेज दौड़े तो सांस हांफने लगती है !

टूटे ख्वाब, अधुरी ख्वाइशें,

सब मुँह तुम्हारा ताकने लगती है।

खुशी इस बात की होती है

कि ये उम्र प्रायः सबको नसीब होती है ।

ये उम्र चालीस की बड़ी अजीब होती है !

ना कोई हसीना 💃 मुस्कुरा के देखती है,

ना ही नजरों के तीर फेंकती है !

और आँखे लड़ भी जाये नसीब से

तो ये उम्र तुम्हें दायरे में रखती है ।

कदर नहीं थी जिसकी जवानी में,

वो पत्नी अब बड़ी करीब होती है।🤣

ये उम्र चालीस की बड़ी अजीब होती है !

वैसे, नजरिया बदलो तो

शुरू से, शुरुआत हो सकती है ।

आधी तो गुजर गयी,

आधी बेहतर गुजर सकती है ।

थोड़ा बालों को काला,

और दिल को हरा कर लो,

अधुरी ख्वाइशों से कोई समझौता कर लो !

जिन्दगी तो चलेगी अपनी रफ्तार से ही,

तुम बस अपनी रफ्तार काबू कर लो ।

फिर देखो ये कितनी खुशनसीब होती है,

ये उम्र चालीस की बड़ी अजीब होती है !

साभार.ज़िंदगीनामा