नसीब से मिली बहन

मेरा नाम नेहा है, और मेरी बहन का नाम दिशा है। हम दोनों जुड़वाँ हैं, और दिशा मुझसे दो मिनट बड़ी है। हमारे बीच बड़ा ही गहरा प्यार है। हमने हमेशा चाहा था कि हमारी शादी एक ही परिवार में हो और नसीब ने हमारी ये ख्वाहिश पूरी कर दी।

मेरे पति का नाम अनिल है, और दिशा के पति का नाम सुनील है। अनिल और सुनील दोनों चचेरे भाई हैं, और उनका परिवार एक साथ ही रहता है। दिशा का घर हमारे पास ही है, इसलिए हमें मिलने में कभी कोई दिक्कत नहीं होती। अनिल और सुनील की भी आपस में अच्छी दोस्ती है। हमारे घर भले ही दीवारों से अलग हों, लेकिन हम कहीं भी आ-जा सकते थे और कहीं भी खाना खा सकते थे।

शादी के कुछ समय बाद, हम दोनों बहनें एक साथ गर्भवती हो गईं, और डॉक्टर ने हमें एक ही डिलीवरी डेट दी थी। ससुराल और मायके में सभी बहुत खुश थे। डिलीवरी के दिन हम दोनों को एक साथ अस्पताल ले जाया गया। मेरी डिलीवरी में कुछ समस्याएं आईं, जिसके कारण ऑपरेशन करना पड़ा। कुछ समय के लिए होश में रही, लेकिन बाद में मुझे कुछ याद नहीं रहा।

जब मेरी आँख खुली, तो मुझे बताया गया कि मुझे बेटा हुआ है। मैंने दिशा के बारे में पूछा, तो पता चला कि उसे एक बेटी हुई है। हम दोनों बहनें बहुत खुश थीं और कुछ समय बाद ससुराल लौट आईं। माँ बनने के बाद हम दोनों एक-दूसरे के साथ अपने बच्चों की देखभाल करने लगे।

जैसे-जैसे मेरा बेटा बड़ा हो रहा था, वह न तो मुझ पर और न ही अनिल पर गया था, बल्कि वह तो दिशा के पति सुनील जैसा दिखने लगा था। पहले मुझे लगा कि यह सिर्फ मेरी सोच है, लेकिन लोग भी यही कहने लगे। जब भी मैं बाहर जाती, लोग कहते कि वह सुनील का बेटा है।

मैंने एक बार अनिल से मजाक में कहा कि बेटा सुनील जैसा दिखता है। उन्होंने इसे मजाक नहीं समझा और गुस्सा हो गए। उनके गुस्से ने मुझे सोच में डाल दिया। मैंने दिशा से सीधे कुछ नहीं कहा, क्योंकि मुझे डर था कि कहीं वह इसे गलत न समझ ले। एक दिन मैंने दिशा से मजाक में कहा कि तुम्हारा बेटा तो अपने चाचा जैसा दिखने लगा है। दिशा थोड़ी मुस्कुराई, और मैं समझ गई कि कुछ छिपा रही है।

मैंने बिना बताए मायके जाने का फैसला किया। माँ से मिलकर मैंने उन्हें अपनी चिंताओं के बारे में बताया। माँ ने मुझे समझाया और कहा कि अब समय आ गया है कि मैं सच्चाई जानूं।

माँ ने बताया कि दिशा के गर्भ में जुड़वाँ बच्चे थे, और मेरी डिलीवरी के समय हुई जटिलताओं के कारण मेरा बच्चा नहीं बच पाया। दिशा ने अपने एक बच्चे को मेरी गोद में देकर मेरे जीवन में खुशियाँ भर दीं, ताकि मुझे दुख न हो। यह जानकर मेरी आँखों में आँसू आ गए।

दिशा ने अपने बच्चे को मेरे लिए त्याग दिया, यह देखकर मेरा दिल भर आया। दिशा और सुनील का दिल बहुत बड़ा है, और अनिल भी मुझे खुश देखना चाहते थे, इसलिए उन्होंने भी कुछ नहीं कहा।

मेरे पास ऐसी बहन और परिवार होना मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं है। मैं दिशा के इस उपकार को कभी नहीं भूलूंगी और कोशिश करती हूँ कि उसके बच्चे को उतना ही प्यार दूं जितना दिशा देती।

सच्चे प्रेम और बलिदान से भरे रिश्ते ही कठिन समय में सबसे बड़ा सहारा होते हैं।

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