राजू एक गरीब परिवार का लड़का था। बचपन में ही उसके पिता का देहांत हो गया था, और उसकी माँ अक्सर बीमार रहती थी। उसका बड़ा भाई दिहाड़ी मजदूरी करता था और भाभी घर के कामकाज संभालती थी। राजू पास के कस्बे के एक निजी स्कूल में शिक्षक था, जहाँ उसकी मुलाकात सविता नाम की एक शिक्षिका से हुई। समय के साथ दोनों के बीच करीबी रिश्ता बन गया और वे एक-दूसरे को पसंद करने लगे।
राजू सविता से बहुत प्यार करता था और उसे लगता था कि सविता भी उससे प्यार करती है। उन्होंने काफी समय तक एक-दूसरे को जानने के बाद शादी के लिए प्रस्ताव दिया, जिसे सविता ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। शादी के बाद, जब सविता अपने पीहर गई, तो उसने ससुराल लौटने से मना कर दिया और तलाक की मांग की। राजू इस अचानक बदलाव को समझ नहीं पाया और उसे इतना सदमा लगा कि उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।
राजू ने अस्पताल से इलाज करवा कर सविता को मनाने की कोशिश की, लेकिन सविता के परिवार ने उसे बदतमीजी से बाहर निकाल दिया और सविता को वापस भेजने से मना कर दिया। सविता तलाक की जिद पर अड़ी रही और राजू के साथ कोई भी समझौता करने को तैयार नहीं थी। राजू ने तलाक देने से मना कर दिया।
सविता के परिवार ने दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाकर राजू के खिलाफ केस कर दिया। राजू ने फिर भी हार नहीं मानी और अदालत के चक्कर लगाता रहा। सविता के परिवार ने उसे मानसिक रूप से परेशान करना शुरू कर दिया, यह धमकी दी कि अगर उसने तलाक के कागजात पर साइन नहीं किए तो उसकी माँ को अदालत में घसीटेंगे।
अखिरकार, राजू ने हार मानते हुए तलाक के कागजात पर साइन कर दिए। कुछ महीनों बाद, राजू को पता चला कि सविता ने उससे शादी केवल तलाकशुदा कोटे से नौकरी पाने के लिए की थी। एक छोटी सी नौकरी के लिए राजू की जिंदगी के साथ इतना बड़ा खेल खेलना बिल्कुल न्यायसंगत नहीं था। आजकल इस तरह की घटनाएँ आम हो गई हैं, जहाँ कुछ सविता जैसी महिलाएं किसी न किसी राजू की जिंदगी को बर्बाद करके अपने फायदे के लिए काम करती हैं।