अतीत के वादे

ट्रेन अपनी गति से गाँव की ओर बढ़ी जा रही थी। प्रिया पूरे तेरह साल बाद अपने गाँव जा रही थी। उसके पिता अपनी अंतिम साँसें ले रहे थे। उसने अपनी आँखें बंद कर ली थीं और सिर को बर्थ के पीछे की दीवार से टिका दिया था। तेरह साल पुरानी यादें उसकी आँखों के सामने घूम रही थीं।


“अरे, रामू… सुन, तुझसे एक बहुत जरूरी बात करनी है।” प्रिया ने रामू से कहा।

“बोलो दीदी, हमसे क्या काम है?”

“रामू, हम दोनों बचपन के दोस्त हैं, जानता है न तू… सुन, मुझे तुझसे प्यार है… मैं तुझसे बहुत प्रेम करती हूँ। मेरे माता-पिता मेरी शादी किसी और से करना चाहते हैं, लेकिन मैं उससे शादी नहीं करना चाहती। वह आदमी एक नम्बर का अय्याश और बिगड़ैल है,” प्रिया ने कहा।

“दीदी! बताइए, हम आपके लिए क्या कर सकते हैं, आपकी एक कहे पर अपनी जान भी दे देंगे,” रामू ने साहस से कहा।

“रामू… मैंने आज शाम की 5.40 वाली ट्रेन से भागने का सोचा है। तू मेरे साथ भाग चलना, नहीं तो माता-पिता मेरी जबरन शादी उस आदमी से करवा देंगे… तू अपनी ऊंट गाड़ी तैयार रखना… मैं ठीक पाँच बजे तुझे ऊँची टेकड़ी के पीछे पीपल के पेड़ के नीचे मिलूंगी।”

“अरे ऐसे कैसे दीदी, हम तो एक पैसा भी नहीं हैं, और हम ट्रेन से भाग चलेंगे तो हमारी ऊंट गाड़ी क्या होगी? वो तो स्टेशन पर ही खड़ी रह जाएगी,” रामू ने चिंता व्यक्त की।

“तू पैसे की चिंता मत कर, वो सब मैं ले आऊंगी। तू अपने दोस्त हरि को पहले ही स्टेशन पर भेज देना, ताकि वो तेरी ऊंट गाड़ी को वापस ले आए। मेरे कॉलेज का एक दोस्त भी आएगा जो हमें ट्रेन में ही मिलेगा, बोल मेरे लिए कर सकता है ये?” प्रिया ने उसे समझाया।

“हम तो पहले ही कह चुके हैं, हम आपके खातिर जान भी दे सकते हैं, हम ठीक 5 बजे आपको टेकड़ी के नीचे मिल जाएंगे। आप जाओ और तैयारी करो,” रामू ने कहा।

“मेरी आखिरी आस तुम ही हो रामू, बस मुझे उस नरक में जाने से बचा लो,” कहते हुए प्रिया की आँखें भीग गईं। प्रिया वहाँ से भागती हुई चली गई। रामू उसकी पीठ को ताकता रहा।

ठीक पाँच बजे रामू की ऊंट गाड़ी में, प्रिया अपने बैग सहित बैठ चुकी थी।

“रामू! डर तो नहीं लग रहा न?” प्रिया ने आशंका से पूछा।

“नहीं डर काहे का, जब तक आप साथ हैं दीदी, हमें किसी का डर नहीं,” रामू ने कहा।

“और तुम्हारे माता-पिता, और तुम्हारी बहन कुसुम…? उनका क्या होगा?” प्रिया ने पूछा।

“हम माता-पिता और कुसुम को कलवा के साथ अपने ननिहाल भेज चुके हैं। उनकी फिक्र मत करो बस जल्दी से स्टेशन पहुँच जाएँ… आपके घर पर पता चल गया होगा, आपके चचेरे भाई और मुखिया जी जरूर स्टेशन की तरफ आएंगे, उससे पहले हमें ट्रेन पकड़नी है,” रामू ने ऊंट गाड़ी भगाते हुए कहा।

स्टेशन आने ही वाला था, प्रिया ने रामू से कहा, “रामू, याद है बचपन में हमने एक वादा किया था कि जिंदगी में एक बार एक-दूसरे से एक चीज़ जरूर मांगेंगे, और सामने वाला मना नहीं करेगा।”

“हाँ दीदी! हमें याद है, एक वादा मेरा, एक वादा आपका,” रामू ने कहा।

“रामू, आज वो दिन आ गया है… मैं अपना वादा मांग रही हूँ। सुनो! मैं तुम्हारे साथ नहीं भाग रही, ट्रेन में मेरा दोस्त आ रहा है, जो शहर में मेरे साथ पढ़ता था। मैं उससे प्रेम करती हूँ और उसके साथ ही भाग रही हूँ। इसके लिए मुझे माफ कर देना… तुम्हें झूठ बोलकर यहाँ लाई। मैं जानती हूँ, मेरे जाने के बाद मेरे घरवाले तुम्हें बहुत तंग करेंगे लेकिन तुम किसी भी तरह अपने आप को बचा लेना। मैं फिर आऊँगी तुमसे मिलने, तुम अपने दोस्त हरि के साथ यहाँ से बचकर भाग निकलना, और एक बात है, मैं बचपन में तुमसे प्रेम करती थी, लेकिन अब मैं बड़ी हो गई हूँ, अब मुझे तुममें अपना प्रेमी नजर नहीं आता, मुझे माफ कर देना रामू,” प्रिया ने बहुत आत्मग्लानि के साथ कहा।

“लो दीदी, स्टेशन आ गया है, 10 मिनट में ट्रेन आ जाएगी। बस आपको झट से चढ़ा दूँगा। मेरी चिंता मत करना, मेरी मदद के लिए यहाँ हरि ही नहीं, रमेश और शिवू भी आए हैं। लेकिन एक वादा मेरा भी पूरा कर जाइए, वादा ये कि अपना ख्याल रखेंगे, कभी भी खुद को दुखी नहीं करेंगे और गाँव जरूर लौटकर आएँगी, वादा कीजिए दीदी,” रामू ने कहा।

“वादा करती हूँ रामू, वादा करती हूँ तुमसे,” प्रिया ने भीगी आँखों से कहा।

“दीदी ट्रेन आ गई है, जल्दी से दौड़कर ट्रेन में चढ़िए। देखिए गाँव के रास्ते पर धूल का गुबार उठ रहा है, शायद मुखिया जी और आपके चचेरे भाई लोग आ रहे हैं,” रामू ने प्रिया का बैग उठाकर ट्रेन की ओर दौड़ लगाई।

प्रिया उसके साथ दौड़कर ट्रेन की बोगी तक पहुँची। बोगी से एक हाथ निकला और उसने प्रिया का हाथ थाम लिया। रामू ने जल्दी से बोगी में बैग फेंका और ट्रेन की ओर हाथ हिलाता रहा। ट्रेन ने रेंगने के बाद गति पकड़ ली।


अचानक ट्रेन के पहिये चीखे और प्रिया की आँखें खुल गईं। उसका गाँव आ गया था।

वह ट्रेन से उतरी और स्टेशन से बाहर निकल गई। उसने इधर-उधर नजर दौड़ाई, उसे एक-दो टैक्सी और एक ऊंट गाड़ी नजर आई। उसने पहचाना… ऊंट गाड़ी पर रामू बैठा था।

“रामू, गाँव चलोगे?” प्रिया ने कहा।

“अरे…..!!!! दीदी आप, आइए न बैठिए, मैं तो ये ऊंट गाड़ी इसीलिए यहाँ खड़ा हूँ, गाँव की कोई सवारी आए,” रामू ने आश्चर्य और खुशी से कहा।

“ये तुम्हारी आँख को क्या हुआ रामू?” प्रिया ने आशंकित होते हुए पूछा। प्रिया ने देखा कि रामू बहुत कमजोर हो गया था, और शायद कम उम्र में ही बूढ़ापे की ओर बढ़ रहा था।

“ई लंबी कहानी है दीदी, फिर कभी बताएंगे। आप गाड़ी में बैठिए, नहीं तो अंधेरा हो जाएगा,” रामू ने प्रिया का बैग गाड़ी में रखते हुए कहा।

कुछ देर की खामोशी के बाद प्रिया ने पूछा, “रामू, मेरे जाने के बाद क्या हुआ था… और तुम हरि के साथ रमेश और शिवू को लेकर क्यों आए थे?”

कुछ देर की खामोशी के बाद रामू बोला, “दीदी, हम हरि, रमेश और शिवू को साथ इसलिए लेकर आए थे क्योंकि हम जानते थे कि आप हमारे साथ नहीं किसी और के साथ भाग रही थीं, और वो तीनों हमारी जान की रक्षा करेंगे।”

“अरे…..तुम्हें मालूम था!!!!!, तुम्हें कैसे पता चला? और फिर तुमने ये जानते हुए भी कि हम किसी और के साथ भाग रहे हैं, अपनी जान को जोखिम में क्यों डाला?” प्रिया ने चकित होते हुए पूछा।

“जी… आप ने हमें एक पत्र पोस्ट करने के लिए दिया था, वो आपने जल्दबाजी में सही से चिपकाया नहीं था, वो हमने पढ़ लिया था। आप चौंकिए नहीं, मुझे पता है कि आप केवल ये ही जानती थीं कि हम अनपढ़ हैं, लेकिन हमारी बहन कुसुम ने हमें पढ़ना सिखा दिया था। पर आपने हमें कहा कि आपको हमारे साथ भागना है तो हम समझ गए थे कि आप हमसे मदद माँगना चाहती हैं… और हमने आपको भरम में रहने दिया कि हमें कुछ नहीं पता। रहा आपकी मदद की बात तो आपने कहा था कि आपकी जिंदगी का सवाल है, तो हम आपकी जिंदगी बचाने के लिए ऐसी कई जानें कुर्बान कर सकते हैं,” रामू ने कहा।

“लेकिन मेरे लिए क्यों?” प्रिया ने आहत होते हुए पूछा।

“क्योंकि हम आपसे प्यार करते थे,” रामू ने एक गहरी साँस के साथ कहा।

कुछ देर खामोशी छाई रही। वातावरण में मिट्टी और धुएँ का मिला-जुला धुंधलका छा रहा था।

“तुम्हारी आँख को क्या हुआ?” प्रिया ने काफी देर बाद सवाल किया।

“आपकी ट्रेन चल पड़ी थी। हम हरि, रमेश और शिवू वहाँ से सरपट गाँव की ओर दौड़ लिए थे, क्योंकि जानते थे कि मुखिया जी और आपके चचेरे भाई अपने लठैतों के साथ मुझे मारने आ रहे हैं। हम जल्दी गाँव पहुंचना चाहते थे ताकि गाँव वाले हमें जान से मार देने से बचा लें, पर हम गाँव से कुछ दूरी पर ही थे कि हमें घेर लिया गया… और लाठियों से हमें मारने लगे। हमें बहुत मारा और एक लाठी मेरी आँख पर पड़ी और मेरी आँख फूट गई। गाँव में लोग आए और हमारी जान बचाई। हम इलाज करवा रहे थे और गाँव में ही रह गए। और जब आप लौटीं तो हमें भी सब याद आया।” रामू ने दुःख के साथ कहा।

प्रिया को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसके दिमाग में रामू का संघर्ष, उसकी बहन कुसुम, उसकी माँ और पिता की छवि आने लगी। उसने रामू से कहा, “मैंने आपको समझा नहीं… और मेरे कारण आप बहुत तकलीफ उठाए हैं। क्या आप मुझे माफ कर सकेंगे?”

“हमने पहले ही कहा था कि हम आपकी खातिर अपनी जान भी दे सकते हैं, फिर छोटी सी बात के लिए हम आपको कैसे माफ नहीं करेंगे।” रामू ने कहा।

प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, “आज एक वादा और कर लेती हूँ, आज से गाँव में हम फिर से एक साथ होंगे।”

रामू ने खुशी के साथ कहा, “हमने पहले ही कहा था, आपकी एक बात हमें कहीं भी ले जा सकती है।”

दोनों साथ में गाँव की ओर बढ़ने लगे, और प्रिया ने महसूस किया कि उसका दिल अब पहले से ज्यादा हल्का हो गया है।