स्नेहा की उड़ान

स्नेहा का दिल उस दिन से भारी था जब उसके कानों में कुछ लोगों की बातें गूंजने लगीं। एक आवाज ने मजाक में कहा, “बहुत शौक था साइंस पढ़ने का, देखते हैं अब क्या करती हैं बहनजी। यहां सौ-पचास बच्चों में टॉप क्या कर लिया खुद को झांसी की रानी समझ बैठी।” दूसरी आवाज़ ने तंज कसते हुए कहा, “अब दो ही ऑप्शन हैं इसके पास, या तो यहां आर्ट्स लेकर पढ़ेगी या पंद्रह किलोमीटर दूर जाकर साइंस पढ़ेगी। देखते हैं इसके बाप में कितना दम है। खुद का गुज़ारा तो मुश्किल से चलता है, बेटी को क्या पढ़ाएगा।” उनकी हंसी और भद्दे जुमले ने स्नेहा को शांत कर दिया।

स्नेहा इन बेकार की बातों को बचपन से ही नजरअंदाज करती थी। उसे पढ़ाई पर ध्यान देना पसंद था और वह इन फालतू की बातों पर ध्यान नहीं देती थी। जब तक कोई उसे हाथ न लगाए, तब तक उसे किसी से भिड़ने की जरूरत नहीं लगती थी। लेकिन अगर कोई उसे छूता, तो वह शेरनी बन जाती थी। उसे वह घटना याद थी जब एक बार विधायक के बेटे ने उसे गाड़ी में खींचने की कोशिश की थी और उसने अपनी चिमटी उसकी आंख में घुसेड़ दी थी। इसके बाद वह चीखता-चिल्लाता भागा और स्कूल में धमकाने आ गया।

उसने धमकी दी थी कि वह देखेगा कैसे यह स्कूल चलता है। स्नेहा ने तब सीधा जवाब दिया था, “अपने बाप से कह देना कि तू लड़की छेड़ रहा था और आज किसी ने तेरी आंख फोड़ दी। अगर अपनी मां का दूध पिया है, तो सामने आ कर हाथ उठा के देख… तेरे हाथ तोड़ के पेड़ पर न टांग दिए तो मेरा नाम भी स्नेहा नहीं।” इसके बाद स्कूल में किसी की हिम्मत नहीं हुई थी किसी लड़की पर आंख उठाने की।

यह एक आम घटना थी जो स्थानीय पेपर में छप गई थी। स्नेहा के घरवालों ने उसे बहुत समझाया था कि वह ऐसे लोगों से नहीं उलझे और अपने पढ़ाई पर ध्यान दे। स्नेहा ने भी इसी बात को समझकर अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया था। आज जब उसने स्कूल में टॉप किया, तो वही विधायक का बेटा उसे धमकी देने आया था क्योंकि आज उसका नाम पेपर में बड़े गर्व के साथ छपा था।

शाम को घर लौटते हुए स्नेहा के मन में सुबह की बातें घूम रही थीं। उसे चिंता थी कि वह आगे की पढ़ाई कैसे करेगी। उसने अपनी मां से कहा, “मां, मुझे साइंस कॉलेज में एडमिशन लेना है।” मां ने चुपचाप सुना। उन्हें पता था कि पंद्रह किलोमीटर दूर भेजना आसान नहीं था। आए दिन छेड़छाड़ की घटनाएं और बदनामी का डर था। लेकिन उन्होंने कहा, “ठीक है, बेटी, तू एडमिशन के लिए फार्म भर दे। उसके बाद देखते हैं कैसे करना है।”

स्नेहा को खुशी हुई कि उसे अपनी मनचाही पढ़ाई करने का मौका मिलेगा। उसका सपना था ट्रिपल आईटी में एडमिशन लेकर कंप्यूटर इंजीनियर बनने का। उसने अखबार में वहां के स्टूडेंट्स के पैकेज देखे थे और उसके सपनों को पंख मिल गए थे। उसे लगा कि बस उसे अपने ड्रीम कॉलेज में पहुंचने की देर है।

रात में जब मां ने पापा से कहा, “सुनो, कल स्नेहा के लिए साइंस कॉलेज का फार्म लेते आना,” पापा के तेवर बदल गए। वह बोले, “इतनी दूर भेजना आसान नहीं है। फिर टेम्पो की धक्कामुक्की, बदमाश लड़कों की छेड़छाड़ कौन झेलेगा?” मां ने कहा, “मगर यहां साइंस नहीं है और स्नेहा साइंस पढ़ना चाहती है।” पापा ने कहा, “पढ़ाई पढ़ाई होती है, साइंस और आर्ट्स का क्या है? हमें उसे डॉक्टर-इंजीनियर बनाना नहीं है। ट्वेल्थ करे और फिर ग्रेजुएशन में एडमिशन ले ले। अच्छा लड़का देख कर शादी कर देंगे।”

स्नेहा सुन रही थी और सोचने लगी कि उसके पापा इतने कमजोर कैसे हो सकते हैं। मां ने गुस्से में कहा, “खर्चे की चिंता तुम मत करो, मैं अपने गहने गिरवी रख दूंगी।” पापा ने धमकी दी, “तुम कुछ दिन मायके चली जाओ। तुम्हारी तबियत ठीक नहीं लग रही है और हां, स्नेहा भी कुछ दिन घूम आएगी, तब तक सब ठीक हो जाएगा।” स्नेहा को लगा कि अब सब खत्म हो गया है। नानी के घर जाने का मतलब मां की घोर बेइज्जती था, और इस बार वह नहीं चाहती थी कि उसकी मां झुके।

मां चुप हो गईं, लेकिन बोलीं, “मैं नहीं चाहती स्नेहा की जिंदगी मेरी तरह बर्बाद हो। तुम रहने दो, मैं देखती हूं क्या करना है।” स्नेहा की मां की दृढ़ता ने घर में एक असहज चुप्पी फैला दी। स्नेहा ने अपने आंसू पोंछे और अपनी मां की आंखों में एक अजीब सी चमक देखी। वह समझ गई कि उसकी मां इस बार हार मानने वाली नहीं है।

अगले दिन, स्नेहा की मां ने अपनी पुरानी जूलरी का डिब्बा खोला और उसे स्नेहा के पापा के सामने रखा। “यह लो, इन गहनों को बेच दो या गिरवी रख दो। स्नेहा की पढ़ाई के लिए पैसे का इंतजाम हो जाएगा।” स्नेहा के पापा को समझ में आ गया कि इस बार मामला गंभीर है और उन्हें अपनी पत्नी के दृढ़ निश्चय के सामने झुकना ही होगा।

स्नेहा के पापा फार्म लेने चले गए। स्नेहा की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसकी मां ने उसे गले से लगाया और कहा, “बेटी, तू अपने सपने पूरे कर। मैं तेरे साथ हूं।” कुछ दिन बाद, स्नेहा का एडमिशन साइंस कॉलेज में हो गया। रोज़ पंद्रह किलोमीटर का सफर, धक्के खाती हुई, पर स्नेहा की मेहनत और लगन ने उसे कभी हारने नहीं दिया। उसके पापा धीरे-धीरे उसकी सफलता को देख कर गर्व महसूस करने लगे।

स्नेहा ने अपने सपनों की पहली छलांग सफलतापूर्वक पार कर ली थी। उसने कॉलेज में भी टॉप किया और स्कॉलरशिप लेकर ट्रिपल आईटी में एडमिशन पा लिया। उसका सपना पूरा होने की ओर बढ़ रहा था, और उसकी मां का संघर्ष भी रंग ला रहा था।

कई साल बाद, जब स्नेहा एक सफल कंप्यूटर इंजीनियर बन गई और उसकी कंपनी का नाम दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गया, तो उसने अपने पापा और मां को एक नए घर में ले जाकर उन्हें सम्मान दिया। उसके पापा की आंखों में गर्व और खुशी के आंसू थे, और उसकी मां की आंखों में उसकी बेटी के सपनों को साकार करने की चमक।

स्नेहा ने साबित कर दिया कि दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से कोई भी सपना पूरा हो सकता है, और उसकी मां ने यह दिखाया कि एक मां का समर्थन किसी भी कठिनाई को पार कर सकता है।